कौन हैं अजीत डोभाल? वो खुफिया योद्धा जिसने पाकिस्तान की कमर तोड़ दी – जानिए उनके मिशन, स्किल और जासूसी की अनसुनी कहानियाँ

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Central News Desk: अजीत कुमार डोभाल – एक ऐसा नाम जो आज भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा का पर्याय बन चुका है। 2014 से देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के रूप में कार्यरत, डोभाल ने ना केवल सीमाओं पर बल्कि पर्दे के पीछे रहकर भी भारत के दुश्मनों की कमर तोड़ने में निर्णायक भूमिका निभाई है। आइए जानते हैं कि आखिर कौन हैं अजीत डोभाल, कैसे बने वो जासूसी के शहंशाह और क्यों उन्हें भारत का जेम्स बॉन्ड कहा जाता है।

खुफिया करियर की शुरुआत और पाक में खुफिया ऑपरेशन:
आपको बता दे की 1968 में केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले अजीत डोभाल ने जल्द ही इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में अपनी भूमिका से हलचल मचा दी। कहा जाता है कि उन्होंने पाकिस्तान में एक साल तक अंडरकवर एजेंट बनकर काम किया और फिर इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में 6 साल तक सेवा दी। इस दौरान उन्होंने कई ऐसे गुप्त मिशनों को अंजाम दिया, जो आज भी फाइलों में ‘क्लासिफाइड’ हैं।

ऑपरेशन ब्लैक थंडर: दुश्मन के दिल में बैठकर जासूसी
1988 के ऑपरेशन ब्लैक थंडर के दौरान डोभाल ने खुद को आईएसआई एजेंट बनाकर स्वर्ण मंदिर में घुसपैठ की। उन्होंने खालिस्तानी आतंकियों के बीच रहकर न केवल उनके हथियारों की जानकारी जुटाई, बल्कि उनकी रणनीतियों को भी कमजोर किया। यह मिशन ऑपरेशन ब्लूस्टार से भी ज्यादा सटीक और रक्तरहित रहा – और इसका श्रेय डोभाल की गहरी समझ और निडरता को जाता है।

दिमाग से खेले जाने वाले युद्ध के माहिर खिलाड़ी:
आपको बता दे की डोभाल ने सिक्किम के भारत में विलय से लेकर कंधार विमान अपहरण संकट में बातचीत तक, हर कदम पर सूझ-बूझ का परिचय दिया। पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक हो या डोकलाम विवाद हर रणनीति के पीछे डोभाल की सोच रही। उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ भारत की नीति में ‘रक्षात्मक’ से ‘आक्रामक’ बदलाव लाने में बड़ी भूमिका निभाई।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में ऐतिहासिक फैसले:
2014 में एनएसए बनने के बाद से डोभाल ने भारत की सुरक्षा नीति को एक नई दिशा दी। उन्होंने म्यांमार में सीमा पार स्ट्राइक की योजना बनाई, इस्लामिक स्टेट से फंसी 46 नर्सों को सुरक्षित निकाला और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने जैसे साहसिक निर्णयों में अहम भूमिका निभाई।


डोभाल की वर्किंग स्टाइल और स्किल:

ग्राउंड इंटेलिजेंस में माहिर: हमेशा खुद जाकर ज़मीन पर स्थिति का जायज़ा लेते हैं। राजनीतिक और सैन्य संतुलन: सेना प्रमुखों और राजनेताओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने में माहिर हैं। मन और मस्तिष्क दोनों से जासूसी, कूटनीति और ऑपरेशनल फैसलों में समान पकड़ हैं। आज अजीत डोभाल ना केवल एक पद का नाम हैं, बल्कि भारत के सुरक्षा तंत्र की रीढ़ हैं। उन्होंने दिखा दिया कि लड़ाई सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि दिमाग से भी लड़ी जाती है – और जीती भी जाती है। उनकी कहानी हर भारतीय को गर्व से भर देती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बन जाती है।

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