उन्नाव में ‘मृत’ घोषित महिला ने डीएम से लगाई गुहार – बोलीं, “मैं जिंदा हूं साहब… मेरी पेंशन बहाल कराइए!”

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Unnao News Desk: जिला मुख्यालय से सटे पुरवा तहसील के सभागार में शनिवार को उस वक्त अजीबोगरीब स्थिति बन गई, जब एक बुजुर्ग महिला डीएम के सामने हाथ जोड़कर यह कहती नजर आईं, “मैं जिंदा हूं साहब, मेरी पेंशन क्यों बंद कर दी गई?”

यह दृश्य संपूर्ण समाधान दिवस के दौरान देखने को मिला, जब नगर के मोहल्ला दलीगढ़ी निवासी केशाना नाम की महिला अधिकारियों के सामने एक अनोखी लेकिन गंभीर समस्या लेकर पहुंचीं।


खुद को ‘जिंदा’ साबित करने आई महिला

महिला केशाना ने जिलाधिकारी गौरांग राठी को शिकायती पत्र सौंपते हुए बताया कि उनके पति राम किशुन का निधन 1 सितंबर 2004 को हो गया था। पति के निधन के बाद उन्होंने निराश्रित महिला पेंशन योजना के तहत आवेदन किया था। आवेदन के लंबे समय बाद, जुलाई 2022 में उन्हें ₹3,000 की पेंशन मिलना शुरू हुई।

लेकिन कुछ महीनों बाद अचानक पेंशन आना बंद हो गया। जब उन्होंने कारण जानना चाहा तो उन्हें बताया गया कि “दस्तावेजों के सत्यापन में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है।”


“मर चुकी हूं, यह किसने तय किया?”

महिला ने अधिकारियों के सामने खड़े होकर सवाल किया –

“क्या मैं बोल नहीं रही? सांस नहीं ले रही? चल-फिर नहीं रही? फिर कैसे कोई कह सकता है कि मैं मर चुकी हूं?”

उन्होंने आगे कहा कि वह पिछले दो वर्षों से अधिकारियों के चक्कर काट रही हैं, बैंक से लेकर समाज कल्याण विभाग तक, लेकिन किसी ने अब तक उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।


डीएम ने दिए तत्काल जांच के आदेश

डीएम गौरांग राठी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तहसील प्रशासन को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए।
उन्होंने एसडीएम प्रमेश श्रीवास्तव को आदेश दिया कि महिला के दस्तावेजों और पेंशन रिकॉर्ड की गहन जांच कराई जाए और यदि गलती पाई जाए तो तत्काल पेंशन बहाल कर संबंधित जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।


सिस्टम की बड़ी चूक: एक जीवित महिला को ‘मृत’ घोषित किया

यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि डिजिटल और दस्तावेज आधारित सिस्टम में भी मानवीय चूक किस हद तक परेशान कर सकती है।
केशाना जैसी गरीब, बेसहारा महिलाओं के लिए यह पेंशन जीवन की एकमात्र सहारा होती है, और ऐसी चूक उनके लिए आर्थिक व मानसिक पीड़ा का कारण बनती है।


प्रशासन से उम्मीद

अब प्रशासन की जिम्मेदारी है कि महिला को न्याय मिले, उनकी पेंशन बहाल हो, और ऐसी घटनाएं दोबारा न हों इसके लिए सिस्टम में सुधार किया जाए।
यह मामला समाज को भी सोचने पर मजबूर करता है कि जब कोई ‘जिंदा’ इंसान खुद को जीवित साबित करने के लिए संघर्ष करे, तो उस व्यवस्था को कितना मानवीय और संवेदनशील बनाने की ज़रूरत है।

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