यूपी में स्कूल समायोजन की प्रक्रिया के बीच राजधानी के एक स्कूल पर उठे सवाल

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Cenrtral News Desk: उत्तर प्रदेश में विद्यालयों के समायोजन (Rationalisation) की प्रक्रिया ज़ोरों पर है, लेकिन इसी बीच राजधानी लखनऊ के एक सरकारी स्कूल में 29 शिक्षकों की नियुक्ति ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

400 छात्रों पर 29 शिक्षक, आखिर क्यों?

मामला राजधानी के एक स्कूल का है, जहां कुल 400 छात्र पढ़ते हैं, लेकिन वहां 29 शिक्षक तैनात हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर इतने अधिक शिक्षकों की जरूरत कैसे और क्यों पड़ी?
क्या इस स्कूल को किसी विशेष श्रेणी में रखा गया है?
या फिर यह किसी प्रभावशाली दबाव का नतीजा है?

जब अधिकांश स्कूल एक या दो शिक्षकों पर निर्भर हैं…

पूरे प्रदेश में हज़ारों ऐसे प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं जहां या तो एकल शिक्षक कार्यरत हैं या फिर शिक्षकों की भारी कमी है। कई स्कूल सिर्फ प्रधानाध्यापक या सहायक अध्यापक के भरोसे चल रहे हैं।
ऐसे में एक स्कूल में 29 शिक्षकों की मौजूदगी, न केवल असंतुलन को उजागर करती है, बल्कि शिक्षा विभाग के नीति निर्धारण पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है।

क्या नियुक्तियों में पारदर्शिता है?

यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या इन शिक्षकों ने स्वेच्छा से यह स्कूल चुना?
या फिर किसी भीतरी साठगांठ के तहत यह समायोजन किया गया?
क्या विभाग को इसकी जानकारी है?
यदि हां, तो स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया गया?
और यदि नहीं, तो निरीक्षण प्रणाली पर भी सवाल उठते हैं।

क्या शिक्षा विभाग देगा जवाब?

शिक्षा के अधिकार कानून और गुणवत्ता शिक्षा की लगातार बातें करने वाले तंत्र को अब यह स्पष्ट करना होगा कि एक ही स्कूल में 29 शिक्षकों की तैनाती किस प्रक्रिया के तहत की गई।
क्या यह नीति का उल्लंघन है या नीति में ही खामी है?

आम लोगों की नजर में यह “भेदभाव” जैसा निर्णय

अभिभावकों और शिक्षक संगठनों का मानना है कि यह मामला भेदभाव और संसाधनों के असमान बंटवारे का प्रतीक है।
अगर एक स्कूल में इतने शिक्षक हैं, तो दूसरे स्कूलों को क्यों वंचित रखा गया?

जांच की मांग, जवाबदेही तय हो

इस पूरे मामले में स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है।
क्योंकि जब पूरा प्रदेश शिक्षक संकट से जूझ रहा है, तो ऐसी नियुक्तियों को नज़रअंदाज़ करना भविष्य में और गहराए हुए संकट को जन्म दे सकता है।

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