लखनऊ में उमड़ी भीड़ ने फिर जगाया मायावती का आत्मविश्वास — ‘बसपा का जादू अब भी कायम है’

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Lucknow News Desk: एक समय देश की राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश की मुख्यधारा की राजनीति से लगभग गायब सी हो गई थी। लेकिन गुरुवार को लखनऊ में हुई मायावती की विशाल रैली ने इस धारणा को झटका दिया है। रैली में उमड़ी भीड़ ने यह संदेश दिया कि दलित समाज का भरोसा अब भी मायावती पर कायम है और बसपा का जनाधार पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।

दलित राजनीति में बसपा की ‘वापसी की उम्मीद’

कभी दलित वोटों के बड़े हिस्से पर बसपा का पूर्ण कब्जा था। लेकिन पिछले कुछ चुनावों में यह वोट बैंक बिखर गया — भाजपा, सपा और कांग्रेस ने इस आधार में सेंध लगाई। नतीजतन बसपा न लोकसभा में और न ही विधानसभा में अपनी पुरानी ताकत दिखा पाई।

मगर लखनऊ रैली की भारी भीड़ ने यह जता दिया कि बसपा और मायावती की पकड़ दलित समाज पर अब भी मजबूत है। दूर-दराज़ के जिलों से आए लाखों कार्यकर्ताओं ने यह साबित कर दिया कि दलित समाज आज भी ‘बेहनजी’ को अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक आवाज़ मानता है।

मायावती ने कहा — ‘यह भीड़ खरीदी नहीं, आस्था से आई है’

रैली में भावुक होते हुए मायावती ने कहा,

“आज की भीड़ ने हमारे अपने सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। ये लोग किसी मजदूरी या दिहाड़ी पर नहीं लाए गए, बल्कि अपने खून-पसीने की कमाई से खुद यहां आए हैं — सिर्फ मुझे सुनने के लिए।”

उनके इस बयान ने न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया, बल्कि विपक्ष को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि बसपा का जनाधार अभी खत्म नहीं हुआ है

राजनीतिक संदेश से भरपूर रैली

यह रैली केवल एक राजनीतिक आयोजन नहीं, बल्कि दलित एकजुटता और आत्मविश्वास का प्रदर्शन भी थी। मंच पर मायावती का अंदाज़ कई साल बाद पहले जैसा जोशीला था। उन्होंने कार्यकर्ताओं को आश्वस्त किया कि बसपा आने वाले चुनावों में फिर से मजबूती के साथ मैदान में उतरेगी।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह भीड़ बसपा के “साइलेंट वोट बैंक” की झलक है, जो चुनावों के वक्त मायावती के साथ खड़ा हो सकता है।

बसपा के लिए ‘नए दौर की शुरुआत’?

लखनऊ रैली से मिले उत्साह के बाद बसपा कार्यकर्ता अब इसे पार्टी के पुनर्जीवन की शुरुआत मान रहे हैं। लंबे समय बाद किसी मंच से मायावती को इतने आत्मविश्वास के साथ बोलते देखना उनके समर्थकों के लिए एक भावनात्मक पल था।

दलित राजनीति की इस भीड़ ने स्पष्ट संदेश दिया है —

“मायावती भले कुछ वक्त के लिए राजनीतिक नक्शे से धुंधली हुई हों,
पर दलितों के दिलों में उनकी जगह अब भी बरकरार है।”

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