बिहार चुनाव 2025: ‘परिवारवाद’ पर बोले थे पीके, अब उन्हीं के टिकट बंटवारे में हावी दिखी विरासत — जानें जन सुराज की पहली लिस्ट की पूरी कहानी
Bihar News Desk: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच जहां एनडीए और महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर सस्पेंस जारी है, वहीं प्रशांत किशोर (PK) की जन सुराज पार्टी ने गुरुवार को अपने पहले 51 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इस लिस्ट में खुद पीके का नाम शामिल नहीं है, जिससे यह कयास तेज हो गए हैं कि वे इस चुनाव में मैदान में उतरने की बजाय रणनीतिक भूमिका में रहेंगे।
लेकिन इस सूची ने जितनी राजनीतिक चर्चा चलाई है, उससे कहीं अधिक सवाल खड़े किए हैं — खासकर उस “परिवारवाद विरोधी” छवि पर, जिसे पीके अब तक लगातार प्रचारित करते रहे हैं।
महिलाओं को टिकट, लेकिन परिवारवाद पर उठे सवाल
प्रशांत किशोर ने पहले ऐलान किया था कि वे कम से कम 40 महिलाओं को उम्मीदवार बनाएंगे। मगर पहली सूची में सिर्फ 7 महिला उम्मीदवारों के नाम हैं — और उनमें से अधिकांश किसी न किसी राजनीतिक परिवार से जुड़ी हैं।
यहां देखिए जन सुराज की महिला उम्मीदवारों की प्रोफाइल, जिन्होंने चर्चा और विवाद दोनों को जन्म दिया
- ऊषा किरण (सुरसंड) – पूर्व सांसद सीताराम यादव की बहू हैं। पहले भाजपा में थीं, अब जन सुराज से उम्मीदवार।
- लता सिंह (अस्थावां) – जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी।
- डॉ. जागृति ठाकुर (मोरवा) – बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती, चिकित्सक और समाजसेवी।
- अर्चना चंद्र यादव (नबीनगर) – भाजपा और बसपा से चुनाव लड़ चुकीं, पति और ससुर दोनों प्रखंड प्रमुख रहे हैं।
- नेहा नटराज (रोहतास) – पूर्व जदयू नेता, जिला पार्षद और महिला जिलाध्यक्ष रह चुकीं।
- पूनम सिन्हा (नालंदा) – जिला परिषद सदस्य और जन सुराज की महिला जिलाध्यक्ष, अब मंत्री श्रवण कुमार को चुनौती देंगी।
- जयंती पटेल (खगड़िया) – उद्यमी, पूर्व जदयू सदस्य और आरसीपी सिंह की करीबी मानी जाती हैं।
इन नामों को देखकर साफ है कि अधिकांश उम्मीदवार या तो किसी राजनीतिक परिवार से आती हैं या पहले अन्य दलों से जुड़ी रही हैं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या प्रशांत किशोर का “परिवारवाद के खिलाफ” वादा अब सिर्फ एक राजनीतिक बयान बनकर रह गया है?
पीके की रणनीति क्या है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीके ने यह लिस्ट पूरी रणनीति के साथ जारी की है। उन्होंने ऐसे उम्मीदवार चुने हैं जिनकी स्थानीय पहचान और नेटवर्क मजबूत है, ताकि जन सुराज को शुरुआती चरण में जमीनी मजबूती मिल सके।
हालांकि, इससे उनकी “नई राजनीति” की छवि को नुकसान भी पहुंचा सकता है, क्योंकि उन्होंने हमेशा कहा था कि वे “परंपरागत राजनीति के ढांचे” को तोड़ना चाहते हैं।
पहली सूची के संदेश
जन सुराज की पहली लिस्ट में यह संदेश साफ झलकता है कि पार्टी संगठन विस्तार के साथ व्यावहारिक राजनीति पर भरोसा कर रही है। मगर इससे यह भी दिखता है कि “जनता के उम्मीदवार” देने का वादा अभी अधूरा है।
प्रशांत किशोर ने भले ही खुद चुनाव न लड़ने का संकेत दिया हो, लेकिन इस सूची से उन्होंने यह जाहिर कर दिया है कि वे चुनावी रणनीति के मास्टरप्लानर के रूप में पार्टी को आकार दे रहे हैं।
राजनीतिक हलकों में चर्चा
बिहार की सियासत में यह सवाल गूंज रहा है — “जो पीके दूसरों को परिवारवाद के लिए घेरते थे, क्या वही अब उसी रास्ते पर चल पड़े हैं?”
एनडीए और महागठबंधन दोनों के नेता जन सुराज पर ‘दोहरी राजनीति’ का आरोप लगा रहे हैं।
फिलहाल बिहार की राजनीति में पीके और उनकी पार्टी का हर कदम चर्चा में है — और यह साफ है कि जन सुराज का पहला टिकट वितरण ही चुनावी बहस का मुद्दा बन गया है।
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