उत्तराखंड में 231 लावारिस महिलाएं! न नाम, न पहचान… मौत की ये कहानियां क्यों चुप हैं?

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Uttarakhand News Desk: उत्तराखंड पुलिस के प्रवक्ता निलेश आनंद भरणे का कहना है कि राज्य पुलिस “डीएनए बैंकिंग योजना” पर काम कर रही है। इसका उद्देश्य भविष्य में मिलने वाले अज्ञात शवों की पहचान को आसान बनाना है। लेकिन सवाल है – क्या यह योजना बीते पांच वर्षों में मिली 231 गुमनाम लाशों को पहचान दिला पाएगी? जब तक इस योजना का धरातल पर असर नहीं दिखता, तब तक यह भी एक अधूरी उम्मीद ही रहेगी।


सिर्फ पहचान नहीं, इंसाफ की जरूरत है

ये मामला सिर्फ नाम-पहचान का नहीं है, बल्कि न्याय का भी है।
हर गुमनाम महिला लाश एक सवाल है –

वो कौन थी?

कहां से आई थी?

उसकी मौत कैसे हुई?

क्या वह हिंसा या शोषण का शिकार बनी?

क्या कोई उसे इंसाफ दिलाने के लिए बचा है?

जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक हर लावारिस महिला शव हमारे सिस्टम की नाकामी और समाज की संवेदनहीनता का आईना बना रहेगा।


हर लाश की एक कहानी होती है, लेकिन क्या वो सुनी जाएगी?

उत्तराखंड की वादियों में बहती हवाएं अब चीख बन गई हैं। पिछले 5 सालों में 318 महिला शव बरामद हुए, जिनमें से 231 आज भी अज्ञात हैं। कोई नाम नहीं, कोई रिश्तेदार नहीं — बस एक चुप्पी।

पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि सिर्फ 87 महिला शवों की शिनाख्त हो पाई है।
बाकी की फाइलें कहीं ठंडे बस्ते में पड़ी हैं।


कानून की प्रक्रिया पहचान के बिना अधूरी है

क्रिमिनल वकील रजत दुआ कहते हैं कि जब तक पीड़िता की पहचान नहीं होती,
तब तक कानून FIR से आगे नहीं बढ़ सकता। सिर्फ रिपोर्ट दर्ज कर देना काफी नहीं है —
जांच की प्रक्रिया और न्याय का पूरा रास्ता पहचान से होकर गुजरता है।


“हर मौत के पीछे कोई जीती-जागती लड़की थी”

सोशल एक्टिविस्ट रमेंद्री मंद्रवाल का कहना है: “इन लाशों पर दोबारा जांच होनी चाहिए।
हर महिला की मौत के पीछे एक अधूरी कहानी होती है — और हर कहानी को सामने आना चाहिए,
ताकि कोई और लड़की, कोई और बेटी, गुमनाम मौत ना मरे।”

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