आज से शुरू जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: भगवान जगन्नाथ नगर भ्रमण पर निकले, जानिए धार्मिक महत्व, परंपराएं और रथों के रहस्य

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Central News Desk: उड़ीसा के पुरी में आज से विश्वप्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की शुरुआत हो गई है। हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनाई जाने वाली यह यात्रा आस्था, परंपरा और भक्ति का अद्वितीय संगम मानी जाती है। इस पावन अवसर पर लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी के रथों को खींचने के लिए एकत्र होते हैं।

धार्मिक महत्व:

मान्यता है कि इस यात्रा में भाग लेने से मन को शांति मिलती है और पुराने कर्मों का बोझ हल्का होता है। रथ की रस्सी खींचने से सौ यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है और व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

भगवान श्रीकृष्ण का हृदय आज भी सुरक्षित:

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का हृदय मृत्यु के बाद भी नहीं जला था। वही लकड़ी के रूप में समुद्र किनारे मिला और आज भी भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर मौजूद है। इसे देखने या छूने की किसी को अनुमति नहीं होती, यहां तक कि पुजारी भी आंखों पर पट्टी और हाथ पर कपड़ा बांधकर ही मूर्ति बदलते हैं।

हर 12 साल में बदली जाती है मूर्ति – ‘नव कलेवर’ की परंपरा:

भगवान की मूर्ति नीम की लकड़ी से बनती है और हर 12 साल में इसे बदला जाता है। लेकिन मूर्ति के भीतर की रहस्यमयी लकड़ी नहीं बदली जाती। मूर्ति बदलते वक्त संपूर्ण शहर की बिजली काट दी जाती है, जिससे पवित्रता बनी रहे।

Puri, July 7 (ANI): Devotees in large number take part in the two-day Lord Jagannath Rath Yatra, in Puri on Sunday. (ANI Photo)

तीनों रथों की बनावट और विशेषता:

जगन्नाथ जी का रथ (नंदीघोष): 45 फीट ऊंचा, 16 पहिए, रस्सी – शंखाचूड़ा नाड़ी

बलभद्र जी का रथ (तालध्वज): 43 फीट ऊंचा, 14 पहिए, रस्सी – बासुकी

सुभद्रा जी का रथ (दर्पदलन): 42 फीट ऊंचा, 12 पहिए, रस्सी – स्वर्णचूड़ा नाड़ी
रथ हर साल नई लकड़ी से बनाए जाते हैं और इनकी रचना पौराणिक नियमों के अनुसार की जाती है।

हर कोई खींच सकता है रथ:

पुरी की रथ यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी समरसता है। कोई भी व्यक्ति – चाहे किसी भी धर्म, जाति या देश से हो – रथ खींच सकता है। बस एक शर्त है: उसका मन भक्ति और श्रद्धा से भरा हो।

रथ यात्रा की उत्पत्ति:

स्कंद पुराण के अनुसार, एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा नगर देखने की इच्छा जाहिर करती हैं। तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र उन्हें रथ पर बिठाकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और मौसी गुंडिचा के घर सात दिन ठहरते हैं। उसी परंपरा को आज भी जीवित रखा गया है।

छेरा पन्हारा और हेरा पंचमी:

रथ यात्रा के पहले दिन पुरी के राजा खुद सोने की झाड़ू से रथ की राह साफ करते हैं, जिसे ‘छेरा पन्हारा’ कहा जाता है – यह सेवा और विनम्रता का प्रतीक है। यात्रा के पांचवें दिन ‘हेरा पंचमी’ पर देवी लक्ष्मी भगवान से अपनी नाराज़गी जताने गुंडिचा मंदिर जाती हैं।

आज का शुभ मुहूर्त:

आज सुबह 5:25 से 7:22 तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहा। यात्रा की शुरुआत अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 11:56 से 12:52 के बीच हुई, जब भगवान जगन्नाथ नगर भ्रमण पर निकले।

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