पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड ढेर: भारतीय सेना ने दाचिगाम ऑपरेशन में किया ढेर

Central News Desk: 26 जुलाई (शनिवार) को श्रीनगर के नजदीक दाचिगाम क्षेत्र में एक संदिग्ध सैटेलाइट फोन सिग्नल ने सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया। यह सिग्नल चीन निर्मित हुवावे डिवाइस जैसा था, और इससे पहले ऐसा ही सिग्नल पहलगाम की बायसरन घाटी में हुए आतंकी हमले के दौरान भी डिटेक्ट किया गया था। यह संयोग नहीं था — सुरक्षाबलों ने तत्काल अपने निगरानी तंत्र को सक्रिय किया और सटीक लोकेशन ट्रैक कर ऑपरेशन की योजना बनाई।

दाचिगाम जंगलों में घेरा डालकर हुआ मुठभेड़
भारतीय सेना की 24 राष्ट्रीय राइफल्स (RR) और 4 पैरा यूनिट ने संयुक्त रूप से दाचिगाम के घने जंगलों में सर्च ऑपरेशन शुरू किया। इस दौरान हाशिम मूसा उर्फ सुलेमान शाह और उसके दो साथी — जिबरान व हमजा अफगानी — सुरक्षाबलों के घेरे में आ गए। मुठभेड़ में तीनों आतंकी मार गिराए गए। उनके पास से एम4 कार्बाइन असॉल्ट राइफल और दो AK-सीरीज़ राइफलें बरामद हुईं।
हाशिम मूसा: पाकिस्तान से संचालित लश्कर का प्रशिक्षित आतंकी
जांच में पता चला कि हाशिम मूसा पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम कर रहा था। उसे पाकिस्तान की स्पेशल सर्विसेज ग्रुप (SSG) — यानी पैरा-कमांडो फोर्स — द्वारा प्रशिक्षित किया गया था। रिपोर्टों के मुताबिक, मूसा को गैर-कश्मीरी नागरिकों और सुरक्षाबलों को निशाना बनाने के मिशन पर भारत भेजा गया था।
SSG की ट्रेनिंग के कारण मूसा अपरंपरागत युद्ध, छिपकर हमला, और कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने में माहिर था। इसीलिए वह लंबे समय तक खुफिया निगरानी के बावजूद बचता रहा।
पहलगाम हमले से जुड़ता है नाम
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के बायसरन घाटी, पहलगाम में आतंकी हमले में 26 मासूम पर्यटकों की जान गई थी। हमले के बाद बचे हुए लोगों की गवाही और जांच एजेंसियों के स्केच से मूसा की पहचान हुई। उसी वक्त एजेंसियों ने मूसा को इस हमले का मास्टरमाइंड बताया था।
इसके बाद भारतीय सेना ने उसे पकड़ने के लिए अभियान छेड़ दिया। इस दौरान 15 ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGWs) को गिरफ्तार किया गया, जिनसे पूछताछ में मूसा के ISI कनेक्शन की पुष्टि हुई।
इससे पहले किन हमलों में शामिल था मूसा?
गांदरबल (गागनगीर) हमला – अक्तूबर 2024: जिसमें छह गैर-कश्मीरी नागरिक और एक डॉक्टर की जान गई थी।
बारामूला (बुटा पथरी) हमला: दो सेना के जवान और दो सेना के पोर्टर मारे गए थे।
इन दोनों घटनाओं में भी हाशिम मूसा का नाम सामने आया था, लेकिन वह हर बार बच निकलता था।
सेना की रणनीति और सटीकता ने बनाई बड़ी कामयाबी
मूसा की गतिविधियों पर सेना लगातार नजर रख रही थी। संदिग्ध संचार सिग्नलों, OGW की पूछताछ, और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के जरिए सेना ने उसकी सटीक लोकेशन तय की। दाचिगाम ऑपरेशन में मिली यह कामयाबी सुरक्षा एजेंसियों और सेना की योजना, समन्वय और दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रमाण है।
शव स्थानीय पुलिस को सौंपे, SOP के तहत अंतिम संस्कार की तैयारी
मारे गए आतंकियों के शव स्थानीय पुलिस को सौंप दिए गए हैं। पहचान की पुष्टि के बाद स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) के तहत कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर अंतिम संस्कार किया जाएगा। इससे पहले सुरक्षाबलों ने शवों की तस्वीरें और हथियारों की फोटोग्राफी भी की है, जिससे आगे की जांच में मदद मिल सके।
एक बड़ा खतरा टला, पर चुनौती अब भी बाकी
हाशिम मूसा की मौत से भारत ने न सिर्फ पहलगाम हमले के मास्टरमाइंड को खत्म किया, बल्कि लश्कर की एक बड़ी साजिश को भी नाकाम किया है। हालांकि सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि पाकिस्तान की ओर से प्रॉक्सी वॉर की रणनीति जारी है। ऐसे में सतर्कता और कड़ी निगरानी आगे भी जारी रहेगी।

Avneesh Mishra is a young and energetic journalist. He keeps a keen eye on sports, politics and foreign affairs. Avneesh has done Post Graduate Diploma in TV Journalism.