भारत में AC इस्तेमाल पर लगेगा ‘तापमान नियम’, सरकार ने तय किया स्टैंडर्ड तापमान

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AC की रिकॉर्ड बिक्री और बढ़ती बिजली खपत के बीच सरकार का बड़ा फैसला

भारत में पिछले साल एयर कंडीशनर्स (AC) की रिकॉर्ड बिक्री दर्ज की गई। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, 2023 में देश में करीब 1.40 करोड़ AC बिके, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इसी बीच केंद्र सरकार ने अब AC उपयोग को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है – अब देशभर में AC का तापमान 20 डिग्री से नीचे और 28 डिग्री से ऊपर नहीं रखा जा सकेगा।

क्या है नया नियम?

केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बताया कि सरकार जल्द ही एक ऐसा नियम लागू करने जा रही है, जिसमें AC के तापमान को 20 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रखना अनिवार्य होगा। इस फैसले का मकसद बिजली की बचत, पर्यावरण संरक्षण और लोगों की आदतों में बदलाव लाना है।

क्यों ज़रूरी हो गया था ये फैसला?

भारत में AC की मांग लगातार बढ़ रही है, खासकर शहरी इलाकों में।

ग्रीनहाउस गैसों और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अब हिल स्टेशनों जैसे मसूरी में भी AC का इस्तेमाल आम हो गया है।

बिजली की मांग वित्त वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड 250 गीगावॉट तक पहुंच गई है।

बीते 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग 50% तक बढ़ चुका है।

किन राज्यों में सबसे ज़्यादा AC की बिक्री?

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन के अनुसार, चंडीगढ़, दिल्ली, पुद्दुचेरी, गोवा, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्य AC ख़रीदारी में सबसे आगे हैं।

क्या हैं चुनौतियां?

ऊर्जा मामलों के जानकार सौरभ कुमार मानते हैं कि:

इस नियम को लागू करना आसान नहीं होगा।

पुराने AC में इस तापमान सीमा को टेक्निकल रूप से लागू नहीं किया जा सकता।

ऑपरेशन थिएटर, फैक्ट्रियां और तकनीकी स्थानों पर कम तापमान की ज़रूरत होती है, वहां ये नियम बाधा बन सकते हैं।

हालांकि, बिजली मीटर आधारित नियंत्रण प्रणाली के ज़रिए इस पर नज़र रखी जा सकती है।

सरकार की अगली योजना क्या है?

सरकार पहले देखना चाहती है कि जनता इस नियम को किस हद तक स्वीकार करती है। इसके बाद और बदलाव लाए जा सकते हैं। साथ ही AC निर्माण कंपनियों को भी निर्देश दिए जा सकते हैं कि वे भविष्य में तापमान-सीमित मशीनें तैयार करें।

भारत में बढ़ती गर्मी, तेज़ी से शहरीकरण और बढ़ती बिजली खपत के बीच AC के प्रयोग पर सरकार ने एक साहसिक कदम उठाया है। हालांकि इसे लागू करना तकनीकी और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन अगर सफल रहा तो इससे बिजली की भारी बचत और पर्यावरण को राहत मिल सकती है।

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