उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक में तीन करोड़ का घोटाला, शाखा प्रबंधक निलंबित

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Digital News Desk: उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक की गहरूखेड़ा शाखा में एक बड़ा वित्तीय घोटाला सामने आया है। बैंक के शाखा प्रबंधक पवन सचान ने कथित रूप से फर्जी नामों पर ऋण स्वीकृत कर करीब तीन करोड़ रुपये का गबन किया। यह राशि उनके माता-पिता के नाम पर खोले गए खातों में ट्रांसफर की गई थी। बैंक प्रशासन ने घोटाले की पुष्टि करते हुए शाखा प्रबंधक को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।


फर्जी लाभार्थियों के नाम पर स्वीकृत किए गए ऋण

सूत्रों के अनुसार, पवन सचान ने पिछले छह महीने के भीतर फर्जी लाभार्थियों के नाम पर सरकार की विभिन्न योजनाओं की ऋण पत्रावलियां तैयार कीं। इन योजनाओं के नाम पर ऋण स्वीकृत कर राशि अपने माता-पिता रघुवीर और पद्मा सचान के नाम पर खोले गए खातों में स्थानांतरित कर दी गई। इन खातों को पवन ने गहरूखेड़ा समेत अन्य बैंकों में खुद खुलवाया था।


जांच में सामने आईं 30 से अधिक फर्जी फाइलें

जैसे ही ऋण स्वीकृति की संख्या में अचानक वृद्धि हुई, बैंक अधिकारियों को संदेह हुआ। इसके बाद जब फाइलों की गहन जांच की गई तो पता चला कि 30 से अधिक ऋण फाइलें फर्जी निकलीं, जिनमें अभिलेखीय प्रक्रिया अधूरी थी। क्षेत्रीय बैंक प्रबंधक प्रदीप कुमार इक्का ने इस पूरे मामले की पुष्टि की और बताया कि बिना पूरी प्रक्रिया के इतनी बड़ी संख्या में ऋण पास होना गंभीर लापरवाही और धोखाधड़ी का संकेत है।


कैशियर पर भी गिरी संदेह की सुई

बैंक में केवल दो कर्मचारी कार्यरत थे—शाखा प्रबंधक और कैशियर। प्रारंभिक जांच में कैशियर की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। उसे फिलहाल अन्य शाखा में स्थानांतरित कर दिया गया है। बैंक प्रशासन की तरफ से यह भी कहा गया है कि किसी एक व्यक्ति के लिए अकेले इतने ऋण पास करना असंभव है, इसलिए सहयोगियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है।


बैंक कर्मचारियों की भूमिका की जांच जारी, FIR की तैयारी

प्राथमिक जांच पूरी होने के बाद बैंक प्रशासन जल्द ही एफआईआर दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू करेगा। साथ ही, शाखा की गतिविधियों को लेकर पिछले छह महीनों की बैंकिंग ट्रांजैक्शनों की फॉरेंसिक जांच भी कराई जाएगी।


क्या है आरोपी शाखा प्रबंधक की पृष्ठभूमि?

पवन सचान, कानपुर नगर के सजेती थाना क्षेत्र के चतुरी का पुरवा गांव के निवासी हैं। उन्हें वर्ष 2017-18 में उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक में नौकरी मिली थी। कई शाखाओं में कार्य करने के बाद उन्हें करीब नौ महीने पहले गहरूखेड़ा शाखा में तैनात किया गया था। यहीं पर उन्होंने इस घोटाले की साजिश रची और उसे अंजाम दिया।


निष्कर्ष: बैंकिंग व्यवस्था की निगरानी पर उठे सवाल

यह मामला ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित बैंकों की निगरानी प्रणाली की गंभीर खामियों को उजागर करता है। जहां एक ओर बैंक सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का माध्यम हैं, वहीं आंतरिक भ्रष्टाचार इन उद्देश्यों को नुकसान पहुंचा रहा है।

जांच जारी है, और पूरे मामले पर जिला प्रशासन तथा पुलिस की नजर बनी हुई है।

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