परंपरा और विज्ञान का अद्भुत संगम: गुरुकुल से इसरो तक का सफर तय करने वाले गोविंद कृष्णन की प्रेरणादायक कहानी

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Cerntral News desk: केरल के कन्नूर जिले के रहने वाले गोविंद कृष्णन एम ने वो कर दिखाया है, जिसे आमतौर पर नामुमकिन माना जाता है। एक समय गुरुकुल की पाठशाला में वैदिक मंत्रों का उच्चारण करने वाला ये छात्र अब भारत के सबसे बड़े अंतरिक्ष संस्थान ISRO में बतौर वैज्ञानिक अपनी नई पारी शुरू करने जा रहा है।

गुरुकुल से शुरू हुआ सफर

गोविंद का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। उनके पिता हरीश कुमार भारतीय नौसेना में अधिकारी थे। लेकिन 2009 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर अपने बेटे को वैदिक शिक्षा दिलाने का फैसला किया। चौथी कक्षा के बाद गोविंद का उपनयन संस्कार हुआ और उन्हें त्रिशूर के ब्रह्मस्वाम माधव गुरुकुल में दाखिल कराया गया।

यहां की दिनचर्या बेहद कठिन थी — सुबह 5 बजे उठना, यज्ञ, मंत्रों का पाठ और मौखिक शिक्षा। कोई किताब, कोई नोट्स नहीं — सिर्फ गुरु की वाणी और स्मृति। गोविंद बताते हैं, “सिर्फ पांच छात्र थे, यजुर्वेद का अध्ययन किया और साल में एक बार नजदीकी सरकारी स्कूल जाकर परीक्षा देता था।”

आधुनिक शिक्षा की ओर कदम

आठवीं कक्षा के बाद गोविंद ने नियमित स्कूल में पढ़ाई शुरू की और नादक्कवु के विवेकोदयम बॉयज स्कूल से 10वीं कक्षा A+ ग्रेड के साथ पास की। इसके बाद अल्वा कॉलेज मूडबिद्री से 11वीं और 12वीं की पढ़ाई की और JEE की तैयारी में जुट गए।

2021 में JEE एडवांस्ड पास कर IIST पहुंचे

2021 में उन्होंने JEE मेन और एडवांस्ड दोनों पास कर IIST (Indian Institute of Space Science and Technology) में B.Tech (Electronics & Communication) में दाखिला लिया। यहीं से उनकी असली उड़ान शुरू हुई।

ISRO में वैज्ञानिक पद पर चयन

B.Tech की पढ़ाई पूरी करने के बाद गोविंद ने ICRB चयन प्रक्रिया के तहत ISRO के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में बतौर वैज्ञानिक चयनित होकर इतिहास रच दिया। वे जुलाई 2025 से आधिकारिक रूप से इस पद पर कार्यभार संभालेंगे।

परंपरा और विज्ञान का संगम

गोविंद कहते हैं, “गुरुकुल ने मुझे अनुशासन और मानसिक दृढ़ता दी। आधुनिक विज्ञान ने दिशा दिखाई। दोनों का मेल ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है।” उनका यह सफर उस सोच को चुनौती देता है जिसमें यह माना जाता है कि परंपरागत शिक्षा और आधुनिक विज्ञान साथ नहीं चल सकते।

युवाओं के लिए एक मिसाल

आज गोविंद हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो अपनी जड़ों से जुड़कर आधुनिकता की उड़ान भरना चाहते हैं। उन्होंने साबित किया है कि अध्यात्म और विज्ञान एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हो सकते हैं।

यह कहानी सिर्फ एक सफलता की नहीं, बल्कि भारत की उस सांस्कृतिक विरासत और वैज्ञानिक सोच की है, जो मिलकर देश का भविष्य रच रही है।

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