मोहन भागवत का बड़ा बयान: “75 की उम्र के बाद पद छोड़ देना चाहिए”

पुस्तक विमोचन के दौरान मोरोपंत पिंगले के योगदान को किया याद
Central News Desk: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि मोरोपंत पिंगले का योगदान केवल वैचारिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने वैज्ञानिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। सरस्वती नदी पुनरुद्धार अभियान के दौरान वे वैज्ञानिकों के साथ यात्रा पर भी गए थे। भागवत ने कहा कि उन्होंने कई लोगों को संघ और रचनात्मक कार्यों से जोड़ा, जिनमें से कई स्वयंसेवक तक नहीं थे।
‘एकात्मता रथयात्रा’ का संचालन सैन्य सटीकता जैसा
भागवत ने मोरोपंत पिंगले द्वारा गंगासागर से सोमनाथ तक निकाली गई ‘एकात्मता रथयात्रा’ का उल्लेख करते हुए कहा कि एक अखबार ने इस यात्रा के संचालन को ‘सैन्य सटीकता’ (military precision) कहा था। वे जहां भी बोलते थे, वहां श्रोता तनावमुक्त हो जाते थे।
“75 साल के बाद रुक जाना चाहिए”: भागवत
पुस्तक विमोचन के दौरान मोहन भागवत ने उम्र और जिम्मेदारी पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि 75 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को पद छोड़कर दूसरों के लिए रास्ता बनाना चाहिए। उन्होंने मोरोपंत पिंगले के एक कथन को याद किया, जिसमें उन्होंने कहा था, “अगर आपको 75 साल की उम्र में शॉल से सम्मानित किया जा रहा है, तो इसका मतलब है कि अब आपको रुक जाना चाहिए, आप बूढ़े हो गए हैं और अब किसी और को आने देना चाहिए।”
भागवत खुद इस साल 11 सितंबर को 75 वर्ष के हो जाएंगे।
मोरोपंत पिंगले: निस्वार्थता का प्रतीक
मोहन भागवत ने मोरोपंत पिंगले को पूर्ण निस्वार्थता का मूर्तिमान स्वरूप बताया। नागपुर में आयोजित पुस्तक ‘Moropant Pinglay: The Architect of Hindu Resurgence’ के विमोचन समारोह में उन्होंने कहा कि पिंगले राष्ट्र निर्माण के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। वे आत्मप्रशंसा से दूर रहते थे और हर प्रकार के सम्मान से बचने का प्रयास करते थे।
आपातकाल के समय भी दिखाई दूरदृष्टि
भागवत ने आपातकाल के बाद की राजनीतिक स्थितियों का उल्लेख करते हुए बताया कि मोरोपंत पिंगले ने उस समय अनुमान लगाया था कि यदि सभी विपक्षी दल एक साथ आएंगे तो उन्हें लगभग 276 सीटें मिलेंगी, और वही परिणाम सामने आया। जब चुनाव परिणाम आए तब पिंगले प्रचार की चकाचौंध से दूर सज्जनगढ़ किले में थे।
विनोदी स्वभाव और सादगी की मिसाल
भागवत ने पिंगले की विनम्रता और सेंस ऑफ ह्यूमर को भी याद किया। उन्होंने कहा कि वे कभी अपनी उपलब्धियों की चर्चा नहीं करते थे। तारीफ होने पर वे मुस्कुरा कर बात बदल देते थे। उन्हें सम्मान या अभिनंदन में कोई रुचि नहीं थी।

Rashika Saxena is a young and energetic journalist. She keeps a keen eye on the issues happening in health, politics and film industry. Rashika has done a post graduate diploma in TV journalism