कॉटन कपड़े होंगे पांच प्रतिशत तक महंगे, एमएसपी बढ़ोतरी से निर्यात पर भी असर की आशंका

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Business News Desk: आगामी सीजन के लिए केंद्र सरकार द्वारा कपास (कॉटन) के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि के फैसले का सीधा असर कपड़ा उद्योग और उपभोक्ताओं पर पड़ने जा रहा है। विशेषज्ञों और उद्यमियों का मानना है कि इससे कॉटन यार्न, फैब्रिक और गारमेंट की कीमतों में 5% तक की बढ़ोतरी संभव है। साथ ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा के चलते भारत के टेक्सटाइल निर्यात पर भी दबाव बढ़ सकता है।

किसानों को फायदा, लेकिन उद्योग और उपभोक्ताओं की जेब पर असर

सरकार ने लांग स्टेपल कॉटन के एमएसपी को 7521 रुपये से बढ़ाकर 8110 रुपये प्रति क्विंटल और मीडियम स्टेपल कॉटन के एमएसपी को 7121 से बढ़ाकर 7710 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। इससे किसानों को बेहतर कीमत मिलने की उम्मीद है, लेकिन इससे कॉटन आधारित वस्त्र निर्माण की लागत में सीधा इजाफा होगा।

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वैश्विक बाजार में सस्ती कॉटन, भारतीय कपड़े होंगे महंगे

कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज (CITI) के पूर्व अध्यक्ष संजय जैन ने चेतावनी दी है कि वैश्विक बाजार में कॉटन की कीमत भारत के मुकाबले कम है, जिससे भारतीय गारमेंट निर्यात प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है। यदि यह मूल्य प्रवृत्ति अक्टूबर के बाद भी जारी रही, तो भारत के गारमेंट उत्पाद अन्य देशों की तुलना में महंगे साबित होंगे।

गारमेंट उद्योग पर दबाव, निर्यात को खतरा

भारत के कुल गारमेंट निर्यात में 50% से अधिक हिस्सा कॉटन गारमेंट का है। ऐसे में लागत बढ़ने से निर्यात प्रभावित हो सकता है। गुजरात और पंजाब के गारमेंट निर्माताओं का कहना है कि उत्पादन लागत बढ़ने से उन्हें या तो कीमत बढ़ानी होगी या फिर मुनाफे में कटौती करनी पड़ेगी। इससे उद्योग की सेहत पर असर पड़ेगा।

फिर भी निर्यात में दिखी मजबूती

हालांकि बीते वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का कुल गारमेंट निर्यात 10% बढ़कर 16 अरब डॉलर तक पहुंचा है। वहीं कॉटन यार्न और फैब्रिक निर्यात में 3.10% की वृद्धि दर्ज की गई। बावजूद इसके, एमएसपी वृद्धि से भविष्य में यह गति थम सकती है।

निष्कर्ष

सरकार का कदम किसानों के हित में भले हो, लेकिन इसके दूरगामी असर कपड़ा उद्योग और देश के निर्यात पर भी पड़े बिना नहीं रहेंगे। अब देखना यह होगा कि उद्योग किस रणनीति से इस चुनौती से निपटता है — कीमत बढ़ाकर, मुनाफा घटाकर या तकनीकी नवाचार के सहारे लागत नियंत्रण कर।

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