जंगल राज की ओर लौटता बिहार: नीतीश की राह में अपराध बना बड़ी बाधा

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गोपाल खेमका मर्डर के बाद विपक्ष ने सरकार पर बोला हमला, चिराग पासवान भी हुए हमलावर

Bihar News Desk: बिहार में एक बार फिर कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। दिनदहाड़े हत्याएं, लूट, रेप और फायरिंग की घटनाएं उसी अंदाज में सामने आ रही हैं, जैसे 90 के दशक में लालू-राबड़ी राज के दौरान होती थीं। राजधानी पटना में मशहूर कारोबारी गोपाल खेमका की गोली मारकर हत्या और सारण जिले के मलमलिया में तीन लोगों की हत्या ने बिहार की सियासत को हिला दिया है।

तेजस्वी यादव लगातार नीतीश सरकार को कानून व्यवस्था पर घेरते रहे हैं, लेकिन अब एनडीए के भीतर से भी आवाजें उठने लगी हैं। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर साफ कहा है कि बिहार में कानून व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह चरमरा गई हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में सामाजिक चेतना खत्म हो चुकी है और आम लोगों में असुरक्षा का माहौल है।

गोपाल खेमका हत्याकांड: अपराधियों की खुली चुनौती

शुक्रवार देर रात पटना के गांधी मैदान इलाके में बिजनेस मैन गोपाल खेमका की कनपटी में सटाकर गोली मार दी गई। इस घटना से न केवल व्यापारिक वर्ग सन्न है, बल्कि पूरे बिहार में दहशत का माहौल बन गया है। उसी दिन सारण में तीन हत्याएं और पटना में यह मर्डर—इन घटनाओं ने विपक्ष को सरकार पर हमला बोलने का पूरा मौका दे दिया है।

तेजस्वी यादव ने कहा, “बिहार में अब कानून नाम की कोई चीज नहीं बची है। नीतीश कुमार सिर्फ कुर्सी बचाने की कोशिश में लगे हैं।’’ चिराग पासवान ने भी सुर मिलाते हुए कहा कि राज्य में विकास के नाम पर कुछ नहीं बचा, सिर्फ अपराधियों का मनोबल बढ़ा है।

नीतीश का कम होता इकबाल

एक समय था जब 2005 से 2010 तक नीतीश कुमार को ‘सुशासन बाबू’ कहा जाता था। उन्होंने लालू-राबड़ी के कथित ‘जंगल राज’ से राज्य को मुक्ति दिलाई थी। पुलिस ने अपराधियों को जेल भेजा, नौकरशाही को स्वतंत्रता दी गई और लोगों में विश्वास पैदा हुआ। उसी का नतीजा था कि 2005 में 55 सीटों पर सिमटी जेडीयू 2010 में 115 सीटों तक पहुंच गई।

लेकिन वक्त के साथ समीकरण बदले। आरजेडी से गठबंधन, बार-बार पाला बदलने और सियासी मजबूरियों ने नीतीश कुमार की छवि को कमजोर कर दिया। 2020 में जेडीयू महज 43 सीटों पर सिमट गई, और 2022 में फिर आरजेडी के साथ सरकार बनाने का फैसला उन्हें भारी पड़ता दिख रहा है।

‘जंगल राज’ की वापसी?

जंगल राज शब्द पहली बार भाजपा नेता सुशील मोदी ने 90 के दशक के लालू शासन के लिए इस्तेमाल किया था। बाद में पटना हाईकोर्ट ने भी इसी शब्द का प्रयोग एक फैसले में किया था। अपहरण, नरसंहार, रेप और फिरौती जैसे अपराध उस दौर की पहचान बन गए थे। अब लोग कहने लगे हैं कि वही दौर दोबारा लौट रहा है।

नीतीश कुमार हमेशा कहते रहे हैं कि ‘क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म से समझौता नहीं होगा।’ लेकिन आज स्थिति यह है कि पुलिसकर्मी तक अपराधियों के हाथों पिट रहे हैं। दारू-बालू का अवैध कारोबार फल-फूल रहा है।

2025 चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेगा अपराध

तेजस्वी यादव पहले ही अपराध को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बना चुके हैं। अप्रैल में उन्होंने 177 आपराधिक घटनाओं की सूची जारी कर नीतीश सरकार की नाकामी को उजागर किया। अब गोपाल खेमका की हत्या जैसे हाई-प्रोफाइल मामले इस मुद्दे को और धार दे रहे हैं।

जनता को एक बार फिर वही सवाल सताने लगा है—क्या नीतीश कुमार अपनी खोई हुई साख को बचा पाएंगे? या जंगल राज की वापसी का यह भयावह दृश्य एक बार फिर सत्ता परिवर्तन की भूमिका लिख रहा है?

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