कामयाबी की मिसाल: छोंजिन अंगमो बनीं एवरेस्ट फतह करने वाली पहली दृष्टिबाधित महिला

0
1200-675-24235061-thumbnail-16x9-dflk-aspera

Central News Desk: हौसले और जज्बे की कहानी लिखती 28 वर्षीय छोंजिन अंगमो ने वह कर दिखाया जो कई लोगों के लिए केवल एक सपना रह जाता है। दृष्टिबाधित होने के बावजूद उन्होंने माउंट एवरेस्ट फतह कर न सिर्फ भारत बल्कि विश्व की पहली दृष्टिबाधित महिला पर्वतारोही बनने का गौरव प्राप्त किया है।

बचपन में गई आंखों की रोशनी, लेकिन नहीं टूटा हौसला

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के दुर्गम चांगों गांव की रहने वाली छोंजिन अंगमो की आंखों की रोशनी महज आठ साल की उम्र में चली गई थी। तीसरी कक्षा में पढ़ाई के दौरान एक दवा से एलर्जी के चलते उनकी दृष्टि प्रभावित हुई। इसके बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और जीवन में आगे बढ़ने की ठानी।

एवरेस्ट चढ़ने का सपना और संघर्ष की कहानी

छोंजिन अंगमो को बचपन से ही पर्वतारोहण में रुचि थी। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान से वर्ष 2016 में प्रशिक्षण लिया और वहां उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु’ का पुरस्कार भी मिला। इसके बाद उन्होंने कई चोटियों पर चढ़ाई की, जिसमें सियाचिन ग्लेशियर की कुमार पोस्ट (15,632 फीट) और लद्दाख की 19,717 फीट ऊंची अज्ञात चोटी शामिल हैं।

बिना सहारे नहीं होता सपना पूरा

अंगमो बताती हैं कि एवरेस्ट चढ़ने के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने कई लोगों और संस्थाओं से मदद मांगी, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। अंततः यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने उनका साथ दिया और उनके सपने को साकार किया। वर्तमान में वह दिल्ली स्थित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में ग्राहक सेवा सहयोगी के रूप में कार्यरत हैं।

शिक्षा और प्रशिक्षण का सफर

दृष्टिबाधित होने के बाद भी अंगमो ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्हें लेह के महाबोधि स्कूल और दृष्टिबाधित बच्चों के छात्रावास में दाखिला दिलाया गया। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ से 11वीं और 12वीं की पढ़ाई की और फिर दिल्ली के प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की।

ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम और राष्ट्रीय सम्मान

वर्ष 2021 में वे ‘ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम’ नामक एक विशेष अभियान का हिस्सा बनीं, जिसका नेतृत्व सशस्त्र बलों के दिग्गजों की टीम क्लॉ ने किया था। इस अभियान का उद्देश्य विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना था। उनके इस अद्भुत योगदान और साहस को देखते हुए उन्हें 2024 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन’ के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया।

प्रेरणा का प्रतीक बनीं छोंजिन अंगमो

छोंजिन अंगमो आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी शारीरिक बाधा सफलता की राह में रोड़ा नहीं बन सकती। उनका यह अद्भुत कारनामा न केवल भारत के लिए गर्व की बात है, बल्कि यह दुनिया को यह संदेश देता है कि ‘दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण मायने रखता है’।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *