NCERT की इतिहास की किताबों में बदलाव पर मचा सियासी संग्राम: इतिहास का पुनर्लेखन या एजेंडा का विस्तार?

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NCERT history textbooks controversy

Central News Desk: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत एनसीईआरटी (NCERT) ने आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की किताबों में बड़े बदलाव किए हैं। मुगल काल और दिल्ली सल्तनत से जुड़ी कुछ पुरानी जानकारियां हटाई गई हैं और कुछ नए तथ्यों को शामिल किया गया है। लेकिन इन बदलावों के बाद इतिहास केवल एक शैक्षणिक विषय नहीं रह गया, बल्कि यह एक राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गया है।

क्या बदला गया है?

एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित नई किताबों में दिल्ली सल्तनत और मुगल काल से जुड़ी कुछ जानकारियों को हटाया गया है। इसमें अकबर के प्रशासनिक मॉडल, धार्मिक सहिष्णुता और हिंदू राजाओं से संबंध जैसे तथ्यों को सीमित किया गया है। वहीं, मुगल शासनकाल की सैन्य क्रूरताओं, राजनीतिक संघर्षों और अन्य समकालीन पहलुओं को जोड़ा गया है।

Khabaron Ke Khiladi में हुई बहस

इस मुद्दे पर सप्ताह भर चली बहस का केंद्र बना टीवी शो “खबरों के खिलाड़ी”, जहां वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री, सुनील शुक्ल, विजय त्रिवेदी, अवधेश कुमार और बिलाल सब्जवारी ने अपनी राय रखी।


इतिहास फैक्ट नहीं, नजरिया है – सुनील शुक्ल

पत्रकार सुनील शुक्ल का मानना है कि इतिहास को शासन की नजर से देखने की परंपरा गलत है। उन्होंने कहा:
“इतिहास लिखा नहीं जाता है, इतिहास होता है। यह हमारे देखने का नजरिया है। सरकारों का काम इतिहास लिखना नहीं है। जब सरकारें ऐसा करती हैं, तो यह केवल अपने एजेंडे को चलाने का तरीका होता है।”


राजाओं की क्रूरता भी इतिहास है – विनोद अग्निहोत्री

विनोद अग्निहोत्री ने स्पष्ट किया कि बदलाव पूरी तरह एकतरफा नहीं हैं। उन्होंने कहा:
“इतिहास में केवल प्रिय प्रसंग ही नहीं होते, अप्रिय भी होते हैं। अकबर की सहिष्णुता को हटाया नहीं गया है, लेकिन उसके शासन के कुछ अनछुए पहलुओं को पहली बार शामिल किया गया है। इतिहास को संतुलन के साथ पढ़ाना ज़रूरी है।”


क्या अकबर को डिमीन किया जा रहा है?

कुछ विशेषज्ञों ने यह भी आरोप लगाया कि यह पूरी प्रक्रिया अकबर की छवि को कमजोर करने (डिमीन करने) की एक राजनीतिक कोशिश है। वे मानते हैं कि इतिहास को केवल धार्मिक या राजनीतिक खांचे में बांटना खतरनाक हो सकता है।


शिवाजी भी करते थे अकबर की तारीफ – बिलाल सब्जवारी

बिलाल सब्जवारी ने ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा:
“शिवाजी के वे पत्र आज भी नेशनल म्यूजियम में मौजूद हैं, जिनमें उन्होंने अकबर की प्रशंसा की है। सवाल यह है कि क्या एनसीईआरटी के इन नए तथ्यों का इतिहासकारों ने निष्पक्ष विश्लेषण किया है? अगर हां, तो इसका स्वागत होना चाहिए।”


राजनीति बनाम इतिहास – असली सवाल क्या है?

इस बहस में दो स्पष्ट ध्रुव सामने आए हैं:

  1. पहला पक्ष मानता है कि पहले इतिहास में मुगल शासकों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया और हिंदू राजाओं की अनदेखी हुई।
  2. दूसरा पक्ष कहता है कि अब इतिहास के नाम पर एक खास वैचारिक एजेंडा थोपा जा रहा है, जिसमें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है।

एनसीईआरटी की सफाई

एनसीईआरटी की ओर से बयान में कहा गया है कि ये बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत किए गए हैं, जिनका उद्देश्य छात्रों को संतुलित, सत्य आधारित और समावेशी इतिहास से परिचित कराना है — बिना मानसिक बोझ और नकारात्मक प्रभाव के।


क्या कहता है शिक्षा समाज?

शिक्षाविदों का मानना है कि इतिहास न केवल तथ्य, बल्कि मूल्यबोध भी सिखाता है। पाठ्यक्रम में बदलाव स्वागत योग्य हैं, लेकिन संपूर्ण पारदर्शिता और विशेषज्ञों की भागीदारी के साथ होने चाहिए।
छात्रों को ऐसा इतिहास पढ़ाना चाहिए जिसमें विविधता, सहिष्णुता और आलोचनात्मक सोच के तत्व शामिल हों।

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