हूल दिवस पर आदिवासियों पर लाठीचार्ज के विरोध में झारखंड भर में उबाल, BJP और आदिवासी संगठनों ने किया प्रदर्शन का ऐलान

Central News Desk: झारखंड में हूल दिवस की पूर्व संध्या पर आदिवासी समुदाय के साथ कथित पुलिस बर्बरता ने प्रदेश की राजनीति को गर्मा दिया है। साहिबगंज जिले के भोगनाडीह क्षेत्र में सोमवार को हुए लाठीचार्ज और आंसू गैस की कार्रवाई के विरोध में मंगलवार 1 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी (BJP) सहित कई आदिवासी सामाजिक संगठनों ने पूरे राज्य में जिला मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन और पुतला दहन का ऐलान किया है।
क्या है पूरा मामला?
भोगनाडीह, वह ऐतिहासिक स्थल है जहां से सिदो-कान्हू ने 1855-56 में ब्रिटिश शासन और जमींदारों के खिलाफ संताल विद्रोह का नेतृत्व किया था। इसी वीरता और बलिदान की याद में हर साल 30 जून को ‘हूल दिवस’ मनाया जाता है।
सोमवार को ‘हूल दिवस’ के एक आधिकारिक समारोह से पहले वहां मौजूद स्थानीय आदिवासी समूह द्वारा मंच को लेकर विरोध जताया गया। आरोप है कि इस दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले दागे, जिसमें कई लोग घायल हो गए।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और विरोध प्रदर्शन
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे आदिवासियों का अपमान बताया है। पार्टी के राज्यसभा सांसद और प्रदेश महासचिव आदित्य साहू ने कहा:
“भोगनाडीह की पवित्र भूमि पर आदिवासियों पर लाठीचार्ज होना निंदनीय है। हूल दिवस के दिन सरकार ने उनके जख्मों पर नमक छिड़का है।”
भाजपा ने घोषणा की है कि वह मंगलवार शाम सभी जिला मुख्यालयों पर झारखंड सरकार का पुतला दहन करेगी। साथ ही राजधानी रांची सहित कई जिलों में विरोध रैलियां भी आयोजित की जाएंगी।
आदिवासी संगठनों का भी विरोध तेज
पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ आदिवासी सामाजिक संगठनों ने भी झंडा बुलंद कर दिया है। रांची में अल्बर्ट एक्का चौक पर मंगलवार को राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन का आयोजन किया जाएगा।

एक स्थानीय आदिवासी नेता ने कहा:
“भोगनाडीह आदिवासी अस्मिता का प्रतीक है। वहां की पवित्र मिट्टी पर बल प्रयोग न केवल असंवैधानिक है बल्कि सांस्कृतिक अपमान भी है।”
सरकार की चुप्पी पर सवाल
अब तक राज्य सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। विपक्ष और आदिवासी संगठनों ने सरकार से माफी मांगने, जांच बैठाने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
क्या है हूल दिवस?
हूल का अर्थ होता है “विद्रोह”।
1855 में सिदो और कान्हू मुर्मू ने 10,000 से अधिक संताल आदिवासियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत और जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया था।
यह विद्रोह झारखंड, बिहार और बंगाल के संताल परगना इलाके में फैला था।
इसी की स्मृति में हर साल 30 जून को ‘हूल दिवस’ मनाया जाता है।
अब सबकी निगाहें राज्य सरकार की अगली प्रतिक्रिया पर टिकी हैं। वहीं भाजपा और अन्य संगठनों के आक्रामक रुख को देखते हुए यह मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीतिक रूप से और गरमा सकता है।
राज्य की कानून-व्यवस्था, आदिवासी सम्मान, और ऐतिहासिक स्थलों पर सरकार की भूमिका को लेकर विपक्ष और सत्तारूढ़ दल आमने-सामने हैं। आने वाले समय में यह विवाद राज्य की राजनीति की दिशा तय कर सकता है।

Rashika Saxena is a young and energetic journalist. She keeps a keen eye on the issues happening in health, politics and film industry. Rashika has done a post graduate diploma in TV journalism