पाकिस्तान से लौटे BSF जवान पूर्णम कुमार शॉ की नौकरी पर संकट? जानिए क्या कहते हैं नियम, प्रोटोकॉल और सेना की प्रक्रिया

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Central News Desk: कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद एक अप्रत्याशित घटना ने सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया था। सीमा सुरक्षा बल (BSF) के कांस्टेबल पूर्णम कुमार शॉ गलती से नियंत्रण रेखा पार करते हुए पाकिस्तान पहुंच गए थे। यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील था। हालांकि अब राहत की बात यह है कि 14 मई को करीब 20 दिन बाद पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें अटारी-वाघा बॉर्डर पर भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया है।

लेकिन अब बड़ा सवाल यह है कि क्या पूर्णम शॉ की नौकरी बची रहेगी? क्या उन्हें दोबारा ड्यूटी पर बहाल किया जाएगा या फिर उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई होगी? आइए विस्तार से समझते हैं कि ऐसे मामलों में भारतीय सेना और BSF किन प्रोटोकॉल का पालन करती है।


कैसे हुई सीमा पार?

22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के अगले ही दिन कांस्टेबल पूर्णम शॉ कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में ड्यूटी पर थे। इस दौरान भ्रम की स्थिति में वह गलती से नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में चले गए। पाकिस्तान ने उन्हें हिरासत में ले लिया और 20 दिन तक पूछताछ के बाद भारत को सौंपा।


क्या नौकरी पर खतरा है?

सीधा जवाब यह है कि फिलहाल उनकी नौकरी पर तत्काल कोई खतरा नहीं है।
BSF एक्ट और सुरक्षा बलों के प्रोटोकॉल के मुताबिक, यदि कोई जवान गलती से सीमा पार करता है और इस दौरान उसकी मंशा गलत नहीं होती, तो उसे आमतौर पर बर्खास्त नहीं किया जाता।

लेकिन यह मामला यहीं खत्म नहीं होता। जवान को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि उसकी मानसिक स्थिति ठीक है और उसने कोई संवेदनशील जानकारी साझा नहीं की है।


क्या होते हैं ऐसे मामलों में प्रोटोकॉल?

  1. मेडिकल और साइकोलॉजिकल जांच:
    जवान की वापसी के बाद सबसे पहले उसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जांचा जाता है। इसमें यह देखा जाता है कि वह तनाव में तो नहीं है, या फिर उसके साथ हिरासत में कोई बुरा व्यवहार तो नहीं हुआ। साथ ही शरीर की गहन स्कैनिंग की जाती है ताकि यह तय किया जा सके कि दुश्मन देश ने कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे माइक्रोचिप तो नहीं इम्प्लांट की।
  2. पूछताछ और डीब्रीफिंग:
    पूर्णम शॉ जैसे जवानों से RAW, IB और BSF की इंटेलिजेंस यूनिट्स विस्तृत पूछताछ करती हैं। यह प्रक्रिया कई दिनों से लेकर हफ्तों तक चल सकती है। इसमें यह पता लगाया जाता है कि उनकी गलती कैसे हुई, पाकिस्तान में उनसे किस तरह का व्यवहार किया गया, क्या उनसे कोई संवेदनशील जानकारी ली गई या उन्हें मानसिक दबाव में लाया गया?
  3. ग्राउंडेड ड्यूटी:
    ऐसे जवानों को तुरंत फिर से सीमा पर ड्यूटी नहीं दी जाती। उन्हें कुछ समय तक “ग्राउंडेड” रखा जाता है यानी ऐसे कार्यों में लगाया जाता है जहां उनकी सुरक्षा और मानसिक स्थिति पर नजर रखी जा सके। विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान के मामले में भी यही प्रोटोकॉल अपनाया गया था।
  4. अनुशासनात्मक जांच:
    BSF एक्ट 1968 की धारा 40 के अंतर्गत यदि कोई जवान अनुशासन भंग करता है, तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा सकती है। इसमें सस्पेंशन, डिमोशन या बर्खास्तगी भी संभव है। हालांकि, गलती से सीमा पार करना आमतौर पर अनुशासनहीनता की श्रेणी में नहीं आता, जब तक कि इसके पीछे कोई दुर्भावनापूर्ण मंशा न हो।

आगे क्या?

पूर्णम शॉ से आने वाले हफ्तों में पूछताछ और मेडिकल मूल्यांकन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही यह तय किया जाएगा कि उन्हें कब और किस प्रकार की ड्यूटी सौंपी जाएगी। अगर वह सभी प्रक्रियाओं में फिट और क्लीन पाए जाते हैं तो उनकी सेवा में कोई रुकावट नहीं आएगी और संभवतः उन्हें सामान्य ड्यूटी पर बहाल कर दिया जाएगा।


BSF कांस्टेबल पूर्णम कुमार शॉ की पाकिस्तान से वापसी के बाद उनके भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं। हालांकि मौजूदा प्रोटोकॉल और अब तक की जानकारी के अनुसार उनकी नौकरी जाने की संभावना बेहद कम है। यह एक संवेदनशील मामला जरूर है लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इसे प्रोफेशनल और मानवीय दृष्टिकोण से हैंडल कर रही हैं।

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